रोज बैठकर खिड़की मेंं
उस आसमां को यूँ ताकता है
फिर वहाँ तक पहुँचने की उम्मीद मे
खुद को झांकता है
तेरी ख्वावाहिसे ही है
जो इतिहास बना सकती है
तेरी दुनिया छोड़ने के बाद तेरी
तस्वीर लोगों के दिलों  मेंं
बसा सकती है
फिर तु क्यों एक कदम लेने से डरता है
क्यों जो दुनिया करती है वही तु करता है
ख्वाब सजाने से कभी कोई आशियाना नही मिलता
तु अपनी मंजिलों को पाने के लिए खुद को यूँ तैयार कर
कि कैसी भी हो मुश्किलें
तु निकलेगा उन्हें पार कर
तो हार के डर से खुद को यूँ ना रोकना
दुर है तेरी मंजिलेंं तुझे वहां है पहुँचना
क्योंकि दिल से हारकर डर निकाले बिना
हम कभी जीत नहीं सकते
और वैसे भी चाहत के निचे खड़े रह के हम
कभी बारिश मे भीग नहीं सकते 



कुलदीप मिस्रा

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