गुजर रहा था उस भीड़ मे अपने ही विचारों मेंं 
सोच रहा था कितने चेहरे सच्चे हैं खुद से 
इन हजारों मेंं 
कोई अपने काम से यूँ परेशान है 
तो किसी को अपने काबिलियत पर यूँ अभिमान है
कोई अपनी चुनी हुई राह से गुजर रहा है
और कोई अब तक अपने मंजिलों को ढुंढ़ रहा है
कभी सोचा है क्यों तुम अपने आप को इतना पिछे पाते हो
क्यों जहाँ भीड़ होती है तुम वहीं जाते हो
सोचना जरा इस बात को जो बहुत कम 
लोगों के समझ मे आती है
कि तेज बहाव मे केवल मरी हुई मछलियांं जाती है
ये तो हर कोई कहता है कि वो काम करो जिसमे
तुम्हें मजा आये
पर ये नहीं बताता कि कोई उस बहाव से उल्टा 
जाके अपने मंजिल क़ कैसे पाये
तो ये बात सिर्फ खुद मे छिपी है
कुछ पाने की चाह अभी तुझमे बाकी है
पर तु रुका रहेगा वहां जब तक तुझपे तेरी
दुनिया का जोर है
फिर तु बाहर निकल उस दुनिया से औऱ बता
तु इस जहाँ को कि तु कोई औऱ है
मैं भी ढुंढता रहा अपने जबाबों को सवालों मे 
पर जब सोचा गौर से मिला वो तो बचपन कि किताबों मे
याद है जब हम यूँ सोचा करते थे ख्याल आता था तब भी
वो बात कहने से डरते थे
कि जब दो औऱ तीन पांच होता है तो एक औऱ चार कैसे पांच होता है 
समझो जरा इस इस किस्से को वो खुद मे भी तुमको कितनी बातें कह गया
अरे गणित तो सिखा दिया हमें बस जिंदगी सिखाना रह गया 
तो बस यही बात तुमको दुनिया को बतानी है
कि तुम्हारी जिंदगी उनकी नहीं तुम्हारी कहानी है
तो अब से तुम वो करोगे जिसमे तुम खुशी पाते हो
फिर फर्क नहीं पढ़ता तुम दो औऱ तीन या एक औऱ चार 
पांच ले आते हो
तो फिक्र छोड़ो अंकों की तुम दुनिया को अपना गणित सिखा दो बस जोड़ दो अपनी उस मेहनत को औऱ 
इस जहाँ को पांच बनाकर दिखा दो 

Kuldeep mishra 

Kuldeepmy.blogspot.com




Comments

Popular posts from this blog

ias biography शेना अग्रवाल

वनस्पति नाम

स्वामी विवेकानन्द