ऐसी कहानी आपने अकसर फिल्मों और किताबों में पढ़ी होगी। पर आज कुदरत ने जिंदगी की हकीकत में ऐसा कर दिखाया जिस के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता। ये कोई काल्पनिक कहानी नहीं है। ये कहानी है एक ऐसी लड़की की जिसने अपने जीवन में कभी हार नहीं मानी और वो कर दिखाया जो कोई सोच भी नहीं सकता। आज समाज में उसने अपनी एक अलग पहचान बना ली है, उसका नाम है किंजल सिंह(IAS Kinjal Singh)। किंजल सिंह आज एक आईएएस अफसर जरूर हैं लेकिन इस मुकाम तक पहुंचना उनके लिए आसान नहीं था। आइये जानते है IAS Kinjal singh के बारे में विस्तार से।
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किंजल का एक छोटा परिवार था। जिसमें उनके माता-पिता व एक छोटी बहन प्रांजल थीं। किंजल के पिता केपी सिंह गोंडा के डीएसपी थे। जिनका सन 1982 में उन्हीं के सहकर्मियों ने फर्जी एनकाउंटर कर दिया। पिता की हत्या के समय वे महज छह माह की थीं जबकि उनकी छोटी बहन प्रांजल का जन्म पिता की मौत के छह माह बाद हुआ।
जब उनके पिता की हत्या हुई उस वक्त वह आईएएस की परीक्षा पास कर चुके थे। उनका इंटरव्यू बाकी था। तभी से उनकी मां के दिमाग में ये ख्याल था कि उनकी दोनों बेटियों को सिविल सर्विस की परीक्षा में बैठना चाहिए। किंजल बताती हैं, “जब मां कहती थीं कि वे दोनो बेटियों को आइएएस अफसर बनाएंगी तो लोग उन पर हंसते थे।”
सिर से बाप का साया उठ जाने के बाद उनकी मां के कंधों पर परिवार की जिम्मेदारी आ गई। उनकी मां विभा सिंह कोषाधिकारी थीं। उनकी तनख्वाह का ज्यादातर हिस्सा मुकदमा लडऩे में चला जाता था। लेकिन जब माँ कैंसर से पीड़ित हुयीं तो इलाज की जिम्मेदारी किंजल सिंह ने खुद अपने कंधों पर ली। उस समय वह विधि स्नातक की छात्रा थीं।
मां की 18 बार कीमोथेरेपी हुई। अस्पताल की सीढि़यां उनके लिए उलझन का सबब बन गई थीं, लेकिन औरों के मानिंद उन्होंने हालात से हारने के बजाय जंग करने की ठानी। परिवार के अन्य सदस्यों ने भी दूरी बनाए रखी। फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।
किंजल बताती हैं, “एक दिन डॉक्टर ने मुझसे कहा – क्या तुमने कभी अपनी मां से पूछा है कि वे किस तकलीफ से गुजर रही हैं?” जैसे ही मुझे इस बात का एहसास हुआ, मैंने तुरंत मां के पास जाकर उनसे कहा, “मैं पापा को इंसाफ दिलवाऊंगी। मैं और प्रांजल आइएएस अफसर बनेंगे और अपनी जिम्मेदारी निभा लेंगे। आप अपनी बीमारी से लडऩा बंद कर दो। मां के चेहरे पर सुकून था। कुछ ही देर बाद वे कोमा में चली गईं और कुछ दिन बाद उनकी मौत हो गई।”
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किंजल को मां की मौत के दो दिन बाद ही दिल्ली लौटना पड़ा क्योंकि उनकी परीक्षा थी। उसी साल किंजल ने दिल्ली यूनिवर्सिटी में टॉप किया। इस बीच उन्होंने छोटी बहन को भी दिल्ली बुला लिया और मुखर्जी नगर में फ्लैट किराए पर लेकर दोनों बहनें आइएएस की तैयारी में लग गईं। किंजल बताती हैं, “हम दोनों दुनिया में अकेले रह गए। हम नहीं चाहते थे कि किसी को भी पता चले कि हम दुनिया में अकेले हैं।
जाहिर है हर किसी में किंजल जैसा जुझारूपन नहीं होता और न ही उतनी सघन प्रेरणा होती है। इन सब घटनाओं के बाद किंजल और उनकी छोटी बहन प्रांजल ने खूब मेहनत से पढाई की। दोनों की मेहनत रंग लाई। किंजल और प्रांजल 2008 में आईएएस में चयनित हुईं।
किंजल का मेरिट सूची में 25वां स्थान रहा तो प्रांजल 252वें रैंक पर रही। प्रांजल हरियाणा प्रांत के पंचकुला में अस्टिेन्ट कमिश्नर के पद पर तैनात हैं। किंजल सिंह उत्तर प्रदेश के फैज़ाबाद की जिलाधिकारी हैं।
दोनों बहनों की उम्र में महज एक साल का अंतर है। पर उन्हें अभी भी अपने पिता के हत्यारो को सजा मिलने का इंतजार था। पुलिस का दावा था कि केपी सिंह की हत्या गांव में छिपे डकैतों के साथ क्रॉस-फायरिंग में हुई थी। लेकिन उनकी पत्नी यानि किंजल की मां का कहना था कि उनके पति की हत्या पुलिस वालों ने ही की थी। बाद में इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई थी।
जांच के बाद पता चला कि किंजल के पिता की हत्या उनके ही महकमे के एक जूनियर अधिकारी आरबी सरोज ने की थी। हद तो तब हो गई जब हत्याकांड को सच दिखाने के लिए पुलिसवालों ने 12 गांव वालों की भी हत्या कर दी। 31 साल की जद्दोजहद के बाद 5 जून, 2013 लखनऊ में सीबीआइ की विशेष अदालत ने अपना फैसला सुनाया।
अदालत ने कहाः 1982 को 12-13 मार्च की दरमियानी रात गोंडा के डीएसपी (किंजल के पिता) के.पी.सिंह की हत्या के आरोप में 18 पुलिसवालों को दोषी ठहराया जाता है। इस मामले में 19 पुलिसवालों को अभियुक्त बनाया गया था जिसमें से 10 की मौत हो चुकी है।
जिस वक्त फैसला आया,
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