कठिन मेहनत का कोई तोड़ नहीं है
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Showing posts from February, 2017
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गुजर रहा था उस भीड़ मे अपने ही विचारों मेंं सोच रहा था कितने चेहरे सच्चे हैं खुद से इन हजारों मेंं कोई अपने काम से यूँ परेशान है तो किसी को अपने काबिलियत पर यूँ अभिमान है कोई अपनी चुनी हुई राह से गुजर रहा है और कोई अब तक अपने मंजिलों को ढुंढ़ रहा है कभी सोचा है क्यों तुम अपने आप को इतना पिछे पाते हो क्यों जहाँ भीड़ होती है तुम वहीं जाते हो सोचना जरा इस बात को जो बहुत कम लोगों के समझ मे आती है कि तेज बहाव मे केवल मरी हुई मछलियांं जाती है ये तो हर कोई कहता है कि वो काम करो जिसमे तुम्हें मजा आये पर ये नहीं बताता कि कोई उस बहाव से उल्टा जाके अपने मंजिल क़ कैसे पाये तो ये बात सिर्फ खुद मे छिपी है कुछ पाने की चाह अभी तुझमे बाकी है पर तु रुका रहेगा वहां जब तक तुझपे तेरी दुनिया का जोर है फिर तु बाहर निकल उस दुनिया से औऱ बता तु इस जहाँ को कि तु कोई औऱ है मैं भी ढुंढता रहा अपने जबाबों को सवालों मे पर जब सोचा गौर से मिला वो तो बचपन कि किताबों मे याद है जब हम यूँ सोचा करते थे ख्याल आता था तब भी वो बात कहने से डरते थे कि जब दो औऱ तीन प...
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लहरों से डरकर नौका पार नही होती कोशिश करने वालों कि कभी हार नहीं होती नन्ही चिंटी जब दाना लेकर चलती है चढ़ती दिवारों पर सौ बार फिसलती है मन का विश्वास रगो मे साहस भरता है चढ़कर गिरना गिर कर चढ़ना ना अखरता है आखिर उसकी मेहनत बेकार नहीं होतीं कोशिश करने वालों कि कभी हार नही होती डुबकीयां नदी मेंं गोताखोर लगाता है जा जा कर खाली हाथ लौट कर आता है मिलते नही सहज ही मोती गहरे पानी मेंं बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी मे मुट्ठी खाली उसकी हर बार नहीं होती कोशिश खरने वालों की कभी हार नही होती असफलता एक चुनौती है इसे स्वीकार करो क्या कमी रह गयीं देखो और सुधार करो ...
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तू खुद की खोज मेंं निकल तू किस लिए हताश है तू चल तेरे वजूद की समय को भी तलाश है जो तुमसे लीपटी बेड़ीयां समझ ना इनको वस्त्र तु ये बेड़ियां पिघला के बना ले इनको शस्त्र तू चरित्र जब पवित्र है तो क्यों है ये दशा तेरी ये पापियों को हक नही कि लें परिक्षा तेरी जला के भष्म कर दे जो कुरूर्ता का जाल है तू आरती की लौ नहीं तू जंग की मशाल है
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वक्त की गहराई इस दिल को महसूस हो रही है बिना जाने किस कदर ये जिंदगी महसूस हो रही है वक्त को हराकर हर मंजिल को पाना है कल की परवाह छोड़ इस लम्हे को जाना है ना जाने ये जिंदगी कब हम से रूठ जायेगी मुट्ठी भर रेत की तरह ना जाने कब छुट जायेगी रख हौसला तु आसमान छु जाने की रख यकीन तु मंजर को अपना बनाने का मत हारना ये हौसला कभी होंगी पुरी तेरी ख्वाहिशें सभी कहतेंं हैं ना, मिल ही जायेगी मंजिल भटकते सही क्योंकि गुमराह तो वों हैं जो कभी घर से निकले ही नहीं
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रोज बैठकर खिड़की मेंं उस आसमां को यूँ ताकता है फिर वहाँ तक पहुँचने की उम्मीद मे खुद को झांकता है तेरी ख्वावाहिसे ही है जो इतिहास बना सकती है तेरी दुनिया छोड़ने के बाद तेरी तस्वीर लोगों के दिलों मेंं बसा सकती है फिर तु क्यों एक कदम लेने से डरता है क्यों जो दुनिया करती है वही तु करता है ख्वाब सजाने से कभी कोई आशियाना नही मिलता तु अपनी मंजिलों को पाने के लिए खुद को यूँ तैयार कर कि कैसी भी हो मुश्किलें तु निकलेगा उन्हें पार कर तो हार के डर से खुद को यूँ ना रोकना दुर है तेरी मंजिलेंं तुझे वहां है पहुँचना क्योंकि दिल से हारकर डर निकाले बिना हम कभी जीत नहीं सकते और वैसे भी चाहत के निचे खड़े रह के हम कभी बारिश मे भीग नहीं सकते कुलदीप मिस्रा